पुनर्विकास परियोजनाओं के लिए न्यायिक निकाय की आवश्यकता
आज हम बात करेंगे एक बहुत क्रिटिकल मुद्दा है रीडवलपमेंट। रीडवलपमेंट फंडामेंटल राइट, आर्टिकल 300 ए, गाइडलाइन 79 ए और मैनेजिंग कमेट। अब हम आगे बढ़ते हैं। उसके पहले मैं आपसे निवेदन करूंगी कि मेरे यह चैनल को लाइक, सब्सक्राइब और शेयर कीजिए क्योंकि यह फ्री ऑफ कॉस्ट है और आपको यह जो है मुद्दे वो आपके जनरल पब्लिक के काम में आते हैं वैसे मुद्दे हैं। चलो आगे बढ़ते हैं हम रीडवलपमेंट में। रीडवलपमेंट एक बहुत हॉट केक है और ये हर एक तीसरा बिल्डिंग रीडवलपमेंट में जा रहा है। सही बात है।
जैसे हमारी लाइफ है तो हम यह जैसे हमारे हिंदू शास्त्रों में लिखा है कि हम शरीर छोड़ के हमारा आत्मा नए शरीर में जाता है और नया जन्म लेता है। तो जो इधर है उसको नया जन्म लेना ही पड़ता है। तो वैसे ही अगर बिल्डिंग पुराना हो जाए तो उसको नया बनाना पड़ता है। तो उसके लिए सबसे पहले जो मूवमेंट शुरू हुई थी वो आइलैंड सिटी ऑफ मुंबई से हुई थी क्योंकि सारे के सारे जो पुराने बिल्डिंग्स थे जो चॉल्स थी वो मसून के सीजन में कॉलेज हो जाती थी उसके लिए कोई कानून नहीं थे और मुरली देवरा जो हमारे बहुत वरिष्ठ नेता थे उन्होंने एक कानून लाया और रीडवलपमेंट ऑफ डाई लेपिटेटेड बिल्डिंग्स। तो इसके तहत उन लोगों को काफी सुविधा मिली और यह शुरुआत में जो थी वो सेस बिल्डिंग के लिए थी और वो चर्च गेट्स कुलाबा से लेके बैंड्रा तक एप्लीकेबल थी। धीरे-धीरे 1991 आया जो डीसीआर 1991 डेवलपमेंट कंट्रोल रेगुलेशन 1991 आया और उसके अंदर सारे प्रावधान किए गए। माड़ा की लैंड को रीडवलप कैसे किया जाए? स्लम को कैसे रीडवलप किया जाए? आर्मी वाली जो है पुलिस हेड क्वार्टर्स कैसे डेवलप किया जाए? बीएएमसी की जो प्रॉपर्टीज है उसको कैसे डेवलप किया जाए? और जो हाउसिंग सोसाइटी है उसे कैसे डेवलप किया जाए? यह सारे प्रावधान मैंने अपनी बुक कमेंट्री ऑन डेवलपमेंट कंट्रोल रेगुलेशन 1991 जिसकी 15 एडिशंस आ चुकी है आई थी वो उसके अंदर हमने मैंने डिस्कस किया है। आगे बढ़ते हैं 1991 के बाद क्या हुआ?
इसके बाद 2009 के तहत एक 79 ए का गाइडलाइंस आया। यह गाइडलाइंस थी कोऑपरेटिव सोसाइटी क्योंकि मेजरिटी जो रीडवलपमेंट है वह कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी जो अभी लागू होता है पूरे बंबई में और इसके तहत थर्ड जनवरी 2009 में एक गाइडलाइंस आई वो गाइडलाइंस के तहत रीडवलपमेंट के प्रोजेक्ट्स तैयार करने होते थे मैनेजिंग कमेट को इसके अंदर बहुत सारी कंप्लेंट्स आई कि जो मैनेजिंग कमेट है वह रीडवलपमेंट प्रोसेस में मेंबर्स को कॉन्फिडेंस में नहीं लेती। ट्रांसपेरेंसी नहीं है। आर्बिटरी अपॉइंटमेंट्स होती है। बिजनेस जो होता है वह कंडक्टिंग बिजनेस मतलब कि वह चाहे एजीएम हो, एसजीएम हो तो वो लोग सही जवाब नहीं देते हैं। ऐसे करली बिहेव करते हैं जैसे वो लोग जमींदार है और बाकी के जो फ्लैट ओनर्स हैं वो उनके स्लेव्स है, टेनेंट्स हैं। तो ऐसे भी बिहेव करते हैं और वो लोग वीडियो उतारते हैं तो वीडियो वो लोग शेयर नहीं करते हैं मेंबर्स के साथ में क्योंकि वो अपने पास ही रखते हैं। रजिस्ट्रार में जाते हैं तो वो ऑर्डर पास करने के लिए तीन चार महीने 5 महीने 6 महीने एक साल हो जाता है और तब तक तो पूरा गेम खत्म हो जाता है। तो तीसरा जो रिप्रेजेंटेशन था कि लैक ऑफ कोऑर्डिनेशन था आर्किटेक्ट्स और प्रोजेक्ट कंसलटेंट के बीच में झगड़े होते थे। आर्किटेक्ट इस तरफ जाता है तो प्रोजेक्ट कंसलटेंट उस तरफ जाता है। बिना प्लानिंग रीडवलपमेंट प्रोजेक्ट के रिपोर्ट्स बनते थे। बिना रीडवलपमेंट प्रोजेक्ट के बिना प्लानिंग होता था और पास हो जाता था। फेयर प्रोसेस नहीं थी। फाइनललाइजेशन ऑफ टेंडर में और नॉन पैरिटी इन द एग्रीमेंट टू बी एग्जीक्यूटेड विद डेवलपर। मतलब कि एक कोई फोकस नहीं था। डेवलपर के साथ में जो एग्रीमेंट था उसके अंदर पैरिटी नहीं थी। कोई क्लेरिटी नहीं थी। तो यह सब रिप्रेजेंटेशन आने के बाद सरकार ने रिवाइज गाइडलाइंस इशू की और वो था जीआर 4 जुलाई 2019 और उसके अंदर सेक्शन 79 ए महाराष्ट्र कोऑपरेटिव सोसाइटीज एक्ट 1960 के तहत ये ये जो रेजोल्यूशन है वो बनाया गया। तो अभी यह जो जीआर है मेरी यह जो वीडियो है उसके लिंक में भी मैं लिंक पोस्ट करती हूं। उधर आप पढ़ सकोगे। 2019 की जो गाइडलाइंस है उसके अंदर ऐसा कहा गया है कि वन फिफ्थ जो मेंबर्स है सोसाइटी के वो कमेट को रिप्रेजेंट करें कि हमको ये जो बिल्डिंग है उसको रीडवलपमेंट में लेके जाना चाहिए। वो एप्लीकेशन के साथ में स्कीम और सजेशंस भी देने चाहिए। एप्लीकेशन आने के बाद 8 दिन के अंदर-अंदर सोसाइटी ने एसजीएम की मीटिंग की नोटिस देनी चाहिए जो 14 दिन की होनी चाहिए और उसके बाद एजीएम एसजीएम कन्वीन करनी चाहिए। फिर यह जो एसजीएम है उसके अंदर कोटेशंस मंगाने चाहिए तीन आर्किटेक्ट के और कंसल्ट प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसलटेंट के और जो बिल्डिंग का प्रोजेक्ट है वो वायबल है कि नहीं वो पता चले। अब यहां पर रिवर्स हो रहा है। सपोज़ कमेट यह कह रही है कि हमें रीडवलपमेंट में जाना चाहिए। वन फिफ्थ नहीं और कमेट यह कह रही है कि ओरली हम आपका कंसेंट ले रहे हैं। अभी हमारे पास कोई स्कीम नहीं है। हमने इस पर कुछ डिसाइड नहीं किया है। तो क्या यह लीगल होगा? सबसे पहली बात कमेट उसका जो ये वीडियो उतारती है वो मेंबर्स को देती नहीं है। क्या यह लीगल होगा? तीसरी बात कमिटी विदाउट एनी प्रोजेक्ट्स डिटेल्स और डेवलपमेंट के क्या स्कीम है वो दिए बगैर क्या ब्लाइंड सिग्नेचर ले सकती है ये क्वेश्चंस है और यह होता है मेरे काफी जो केसेस है उसके तहत यह हुआ है और मैं सरकार से दरख्वास्त करूंगी कि इसके तहत भी ध्यान दें। हालांकि कोर्ट ने यह कहा है कि यह जो गाइडलाइंस है 2019 की और 2009 की वो मैंडेटरी नहीं है मगर उसको फॉलो करना चाहिए। अगर गाइडलाइंस मैंडेटरी नहीं है और वो वायलेट होती है तो इसके जिम्मेदार कौन? क्योंकि एक बार बिल्डिंग गिर गया फिर अगर नहीं बनता है तो क्या सोसाइटी की मैनेजिंग कमेट जो प्रपोज कर रही है कि इसको रीडवलपमेंट में ले जाना चाहिए वो जिम्मेदार होगी और किस हद तक जिम्मेदार होगी क्योंकि ये जो सोसाइटी की कमेट है मैंने देखा है कि वो ये केन प्रकार वो इंपोज करती है अपनी टर्म्स एंड कंडीशंस एक बार मेजॉरिटी की हां आ गई फिर रीडवलपमेंट प्रोसेस को रोकना बहुत डिफिकल्ट हो जाता है और माइनॉरिटी की कोई सुनता नहीं है। वो मुद्दे पे मैं इसके बाद आऊंगी। अब जो अगर वायलेट करती है कमेट तो उसका क्या कौन जिम्मेदार है सरकार?
जिसने ऐसी गाइडलाइंस बनाई या कमेटी खुद जिन्होंने अपनी मनमानी की तो इसका भी जवाब इसके बाद यह प्रावधान है कि एक वेबसाइट बनाई जाए। जो आर्किटेक्ट का टेंडर मंगवाना है वो प्रोसेस पब्लिक नोटिस से की जाए। पीएमसी का जो टेंडर मंगाना है वो पब्लिक नोटिस से की जाए। जो लॉयर है उसकी जो एडवोकेट अपॉइंट करना है उसको भी जो अपॉइंटमेंट है वो पब्लिक नोटिस और टेंडर से की जाए। ये अगर प्रोसेस फॉलो नहीं होती तो क्या अ कौन जिम्मेदार है? कोई नहीं। क्योंकि अगर बिल्डिंग 10 साल तक अटक गया तो शायद बिल्डर रेंट देने का बंद कर दे या तो वो थर्ड हैंड में जाए। सेकंड हैं, थर्ड हैंड में जाए और 10 12 साल के बाद हो सकता है आपका बिल्डिंग बने। मगर तब तक जो एकिस्टिंग मेंबर है वो लोग क्योंकि लाइफ का कोई सर्टेनिटी नहीं है। तो एकिस्टिंग मेंबर्स में से काफी लोग जो है वो प्रेजेंट हो या ना हो। इसके बाद जो आएगा वह इनहेरिटेंस के झगड़े आएंगे और इसकी वजह से भी अलॉटमेंट या जो प्रोजेक्ट है वो डिले हो सकता है। अभी यह तो मैंने आपको बोला कि आप यह जो है वो पढ़ सकते हो मेरी वेबसाइट https//: www.shrutidesai.in पे भी यह मिल सकता है। आप सर्च करोगे तो यह मिलेगा गाइडलाइंस 79A महाराष्ट्र कोऑपरेटिव सोसाइटी एक्ट। अभी एक सोच ऐसी भी है कि ये जो रीडवलपमेंट के प्रोसेस है उसके तहत क्या आर्टिकल 300 ए जो है उसका वायलेशन है तो क्योंकि एक मैटर है जहां पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने ही कहा है पूर्णिमा टॉकीस वर्सेस चीफ ऑफिसर धानू नगर परिषद यह एक जात का लैंड एक्विजिशन हुआ तो लैंड एक्विजिशन मतलब फ्लैट का एक्वायर कर रहे हो और आप उसको डिमोलिश करके नया बना रहे हो। लैंड एक्विजिशन में पूरी लैंड सरकार ग्रहण ग्रहण करती है और उसका आपको कंपनसेशन देती है। यह पूरी गाइडलाइंस या कानून में कहीं भी ऐसा नहीं है कि किसी को जो डिसेंटिंग मेंबर है माइनॉरिटी क्योंकि अभी तो बॉम्बे हाईको ने और सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है कि माइनॉरिटी हैज़ नो व्यू अनलेस नो राइट अनलेस इट इज़ जेन्युइन। जेन्युइन होने के जेन्युइन होने के बावजूद भी अगर मेजॉरिटी ने यह कहा कि हमें रिडवलपमेंट में जाना है तो हम कुछ नहीं कर सकते। लैंड एक्विजिशन पे आने से पहले हम ये देखते हैं कि आर्टिकल 300 ए अ क्या कहता है? 300 अ जो है वह प्राइवेट लैंड जो है प्राइवेट प्रॉपर्टी है उसको प्रोटेक्ट करता है और यह कहता है कि किसी की भी प्राइवेट प्रॉपर्टी ड्यू प्रोसेस ऑफ लॉ फॉलो करने के जरूरत है और उसके बिना अगर आप एक्वायर करते हो या उसको डिस्पेस करते हो तो वो वायलेटिव होता है। उसके राइट्स जो है वो अफेक्ट होते हैं। तो ये बहुत सारे जजमेंट्स हैं जहां पर ये कहा गया है कल्याणी थ्रू लीगल रिप्रेजेंटेटिव वर्सेस सुल्तान बाथरी म्यनिसिपल कॉरपोरेशन में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है। अभी मेरा ये आर्गुममेंट है और दूसरी एक बात जो हम फोर्स लैंड एक्विजिशन की बात कर रहे थे तो क्या मेजॉरिटी व्यू जो है वो माइनॉरिटी पे अपना फोर्स एक्विजिशन कर रही है लैंड एक्विजिशन। हालांकि उसको दूसरी बार मिल रहा है। नया कुछ बड़ा घर मिल रहा है। कंपनसेशन मिल रहा है। रेंट मिल रहा है। सवाल यह नहीं है। सवाल यह है कि अगर 3 साल में घर नहीं बना। चार साल में घर नहीं बना। 12 साल में होता है तो क्या उसके राइट्स अफेक्ट नहीं होते हैं? उसका प्रोटेक्शन के लिए ऐसे बोलते हैं कि बैंक गारंटी। कि बैंक गारंटी एग्जीक्यूट करने के लिए हमको कोर्ट में भी तो जाना पड़ता है। वो इजी नहीं है। कोई भी अ कॉमन ले ममैन के लिए। तो यह तो बराबर नहीं है क्योंकि जो शुरुआत ही इनिशियल हुई थी मैनेजिंग कमेट के थ्रू वो अगर गलत है तो पूरा प्रोजेक्ट गलत ही होगा। दूसरी एक बात यह जो मैं जजमेंट मैं कह रही हूं राइट टू फेयर कंपनसेशन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्विजिशन रिहबिलिटेशन एंड रिसेटलमेंट एक्ट 2013 इसके तहत कोई भी अगर एक्विजिशन है जो इसको फॉलो नहीं करता है पूर्णिमा टॉकीज वर्सेस जो मैंने पहले भी कहा चीफ ऑफिसर धानू नगर परिषद के तहत कहा गया है कि आप विदाउट कंपनसेशन टीडीआर, एफएसआई वगैरह किसी पे थोप नहीं सकते। जुडिशियल प्रेसिडेंस है इसके लिए। तो यह मेरा सजेशन है कि सरकार ने इसके अंदर एक और अल्टरनेटिव देना चाहिए कि जिसको पैसे लेके निकलना है पूरा जो कंपनसेशन है मार्केट वैल्यू है टीडीआर का मार्केट वैल्यू है फिर उसको जो बेनिफिट है वो चाहिए वो लेके निकल जाए और मेरा मानना है शायद काफी लोग जो सफर कर रहे होंगे उनका भी मानना है कि सरकार ने यह गाइडलाइंस मैंडेटरी बनानी चाहिए। अगर कोई भी डेविएशन किया ये कमेट मेंबर्स ने अपनी इच्छाएं थोपने के लिए तो उसको जो माइनॉरिटीज हैं वो एक स्पेशल कमेट अथॉरिटी क्रिएट की जाए। वहां पर जाके वैसे भी बॉम्बे हाई कोर्ट ने सीनियर सिटीजन के लिए किया ही है। जो मेरी बुक जो है रीडवलपमेंट ऑफ इन महाराष्ट्र वो एक बुक निकली थी। बहुत लिमिटेड एडिशनंस मैंने प्रिंट की है। तो उसके अंदर भी ये है कि जो रीड सीनियर सिटीजन है उसके लिए एक स्पेशल कमेट बनाई है। तो इसके लिए भी एक स्पेशल जुडिशियल अथॉरिटी बनानी चाहिए। नॉट कोसाई जुडिशियल जुडिशियल अथॉरिटी बनानी चाहिए क्योंकि डेपुटी रजिस्ट्रार को और भी काम होते हैं। उसको बहुत तकलीफ देने की जरूरत नहीं है। तो मैं जो हमारे कोपरेटिव मिनिस्टर है मिस्टर अमित शाह उनको अमित शाह जी को रिक्वेस्ट करती हूं इसके तहत ध्यान दें। लोगों की जिंदगी की कमाई इसके अंदर झा रही है। वेस्ट हो रही है। काफी प्रोजेक्ट्स हैं जो सक्सेसफुल गए हैं। मगर उससे ज्यादा काफी प्रोजेक्ट्स हैं जो फेलियर हुए हैं। तो आप इस पे ध्यान दें। लोगों के घर चले जा रहे हैं। मैनेजिंग कमेटी अपनी मनमानी कर रही है। इसको अगर रोकना है तो एक स्पेशल जुडिशियल अथॉरिटी का गठन करना चाहिए। एक कानून लेके आओ रीडवलपमेंट के लिए सेपरेटली और उसका गठन करो। जहां पर एक कॉमन आदमी जाके अपना रिप्रेजेंट जैसे हमारे ये कंज्यूमर फोरम है। कोई भी जाके वहां पर रिप्रेजेंट कर सकता है। इस तरह से कोई एक जुडिशियल अथॉरिटी का गठन कीजिए क्योंकि ये बहुत सीरियस मामला है। आर्टिकल 300 ए 100% वायलेट होता है ये गाइडलाइंस के तहत और 79 ए के तहत। मेजॉरिटी हां बोल रही है और माइनॉरिटी ने अपनी जिंदगी की कमाई की फ्लैट उनको हवाले कर देनी चाहिए। वह तो कानून में कहीं पर भी नहीं लिखा। ये एक टाइप का लैंड एक्विजिशन हुआ। तो लैंड एक्विजिशन के लिए उसको डबल द कंपनसेशन देना चाहिए। उसको जो कोई भी रेंट है, ट्रांसफर जो ट्रांसफर करने की कॉस्ट है, रिसेटलमेंट का जो कॉस्ट है, वह सब कॉरपेस है, सब देके उसको अलग कर दो। उसके ऊपर रीडवलपमेंट थोपने का भी जो प्रावधान है वह गलत है। ऐसा मेरा पर्सनल मानना है। क्योंकि मैं रीडवलपमेंट के प्रोजेक्ट्स जो मैंने किए और जो मैंने एक्सपीरियंस किया जो डेपुटी रजिस्ट्रार और वगैरह वगैरह में जो कुछ भी होता है वो लोग अभी इसके बारे में तो हम बाद में बात करेंगे मगर एक गठन करने की जुडिशियल अथॉरिटी की बहुत जरूरत है।
SHRUTI DESAI
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