SAME SEX MARRIAGE AND ARDH NARISHWAR – WHETHER IT IS PARALLEL OR THERE IS RESEMBLANCE?
What is Ardh -Narishwar? Is it alike a gay or eunuch? Let us see what is Ardh- Narishwar ‘शंकर: पुरुषा: सर्वे स्त्रिय: सर्वा महेश्वरी।’ (शिवपुराण) अर्थात्–समस्त पुरुष भगवान सदाशिव के अंश और समस्त स्त्रियां भगवती शिवा की अंशभूता हैं, उन्हीं भगवान अर्धनारीश्वर से यह सम्पूर्ण चराचर जगत् व्याप्त है। शक्ति के बिना शिव ‘शव’ हैं शिव और शक्ति एक–दूसरे से उसी प्रकार अभिन्न हैं, जिस प्रकार सूर्य और उसका प्रकाश, अग्नि और उसका ताप तथा दूध और उसकी सफेदी। शिव में ‘इ’कार ही शक्ति है। ‘शिव’ से ‘इ’कार निकल जाने पर ‘शव’ ही रह जाता है। शास्त्रों के अनुसार बिना शक्ति की सहायता के शिव का साक्षात्कार नहीं होता। अत: आदिकाल से ही शिव–शक्ति की संयुक्त उपासना होती रही है। भगवान शिव के अर्धनारीश्वररूप का आध्यात्मिक रहस्य भगवान शिव का अर्धनारीश्वररूप जगत्पिता और जगन्माता के सम्बन्ध को दर्शाता है। सत्–चित् और आनन्द–ईश्वर के तीन रूप हैं। इनमें सत्स्वरूप उनका मातृस्वरूप है, चित्स्वरूप उनका पितृस्वरूप है और उनके आनन्दस्वरूप के दर्शन अर्धनारीश्वररूप में ही होते हैं, जब शिव और शक्ति दोनों मिलकर पूर्णतया एक हो जाते हैं। सृष्टि के समय परम पुरुष अपने ही वामांग से प्रकृति को निकालकर उसमें समस्त सृष्टि की उत्पत्ति करते हैं। शिव गृहस्थों के ईश्वर और विवाहित दम्पत्तियों के उपास्य देव हैं क्योंकि अर्धनारीश्वर शिव स्त्री और पुरुष की पूर्ण एकता की अभिव्यक्ति हैं। संसार की सारी विषमताओं से घिरे रहने पर भी अपने मन को शान्त व स्थिर बनाये रखना ही योग है। भगवान शिव अपने पारिवारिक सम्बन्धों से हमें इसी योग की शिक्षा देते हैं। अपनी धर्मपत्नी के साथ पूर्ण एकात्मकता अनुभव कर, उसकी आत्मा में आत्मा मिलाकर ही मनुष्य आनन्दरूप शिव को प्राप्त कर सकता है। क्यों हुआ अर्धनारीश्वर अवतार? भगवान शिव का अर्धनारीश्वरस्वरूप ब्रह्माजी की कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। पुराणों के अनुसार लोकपितामह ब्रह्माजी ने सनक–सनन्दन आदि मानसपुत्रों का इस इच्छा से सृजन किया कि वे सृष्टि को आगे बढ़ायें परन्तु उनकी प्रजा की वृद्धि में कोई रुचि नहीं थी। अत: ब्रह्माजी भगवान सदाशिव और उनकी परमाशक्ति का चिंतन करते हुए तप करने लगे। इस तप से प्रसन्न होकर भगवान सदाशिव अर्धनारीश्वर रूप में ब्रह्माजी के पास आए और प्रसन्न होकर अपने वामभाग से अपनी शक्ति रुद्राणी को प्रकट किया। वे ही भवानी, जगदम्बा व जगज्जननी हैं। ब्रह्माजी ने भगवती रुद्राणी की स्तुति करते हुए कहा– ’हे देवि! आपके पहले नारी कुल का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था, इसलिए आप ही सृष्टि की प्रथम नारीरूप, मातृरूप और शक्तिरूप हैं। आप अपने एक अंश से इस चराचर जगत् की वृद्धि हेतु मेरे पुत्र दक्ष की कन्या बन जायें।’ ब्रह्माजी की प्रार्थना पर देवी रुद्राणी ने अपनी भौंहों के मध्य भाग से अपने ही समान एक दिव्य नारी–शक्ति उत्पन्न की, जो भगवान शिव की आज्ञा से दक्ष प्रजापति की पुत्री ‘सती’ के नाम से जानी गयीं। देवी रुद्राणी पुन: महादेवजी के शरीर में प्रविष्ट हो गयीं। अत: भगवान सदाशिव के अर्धनारीश्वररूप की उपासना में ही मनुष्य का कल्याण निहित है। अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र (हिन्दी अनुवाद सहित)!!!!!!!! English Translation: That is, all men are part of Lord Sadashiv and all women are part of Lord Shiva, this entire living world is pervaded by the same Lord Ardhanarishwar. Without Shakti, Shiva is a ‘dead body’ Shiva […]
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